Bombay high court: बॉम्बे हाई कोर्ट के जज ने कहा सिंघम जैसी फिल्में समाज को देती है बहुत ही खतरनाक संदेश…

Bombay high court : बॉलीवुड में कई ऐसी फिल्म होती है जो बॉक्स ऑफिस में काफी हीट होती है। ऐसे ही साल 2011 में रिलीज हुई फिल्म ‘सिंघम’ को अजय देवगन के करियर की सुपरहिट फिल्मों में से एक माना जाता है। इसकी पॉपुलैरिटी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रोहित शेट्‌टी निर्देशित यह फिल्म आज एक हिट फ्रेंचाइजी में तब्दील हो चुकी है। हाल ही में मेकर्स ने इसके तीसरे पार्ट की शूटिंग भी शुरू की है।
सिंघम जैसी फिल्में देती हैं खतरनाक संदेश
इसी बीच शुक्रवार को बॉम्बे हाई कोर्ट के जज गौतम पटेल ने कहा कि सिंघम जैसी फिल्में समाज को बहुत ही खतरनाक संदेश देती हैं। इंडियन पुलिस फाउंडेशन के एक कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे पटेल ने कहा कि सिंघम जैसे कॉप कानून का पालन ना करते हुए इंस्टेंट जस्टिस डिलिवर करके समाज को गलत संदेश देते हैं।
फिल्म के क्लामैक्स सीन पर बोले पटेल
जस्टिस पटेल ने इस कार्यक्रम में सिंघम के क्लाइमैक्स का जिक्र किया। उन्होंने कहा, ‘सिंघम के क्लाइमैक्स में विशेष रूप से दिखाया गया है जहां पूरा पुलिस डिपार्टमेंट प्रकाश राज द्वारा निभाए गए राजनेता को मारने पहुंच जाता है। और उसे मारकर ऐसा दिखाया जाता है कि अब न्याय मिल गया है। लेकिन मैं पूछता हूं कि क्या वाकई न्याय मिल गया है? हमें सोचना चाहिए कि वह संदेश कितना खतरनाक है।
हम इतने बेसब्र क्यों हैं? हमें एक ऐसी प्रक्रिया से गुजरना होगा जहां हम निर्दोष और अपराधी का फैसला करते हैं। ये प्रोसेस भले ही स्ले है पर उन्हें ऐसा ही होना होगा.. अगर हम इस प्रोसेस में शॉर्टकट ढूंढने जाएंगे तो हम कानून के शासन को ही नष्ट कर देंगे।’
फिल्मों में जजेस को दिखाया जाता है खराब
जस्टिस पटेल ने आगे कहा, ‘फिल्मों में, पुलिस जजेस के खिलाफ भी एक्शन लेते हुए दिखाई जाती है। कई फिल्मों में जजेस को विनम्र, डरपोक, मोटा चश्मा और अक्सर बहुत खराब कपड़े पहने हुए दिखाया जाता है। मेकर्स कोर्ट पर दोषियों को छोड़ देने का आरोप लगाते हैं। अगर कोई न्याय करता है तो वो सिर्फ नायक ही है जो पुलिस वाला बना हुआ है।’
पब्लिक को लगता है कि कोर्ट कुछ नहीं करती
कार्यक्रम में जस्टिस पटेल ने कहा, ‘पुलिस की इमेज दबंग, भ्रष्ट और गैरजिम्मेदार के रूप में मशहूर है और ऐसा ही जजेस, पॉलिटिशियन और जर्नलिस्ट समेत कई लोगों की पब्लिक लाइफ के बारे में भी कहा जा सकता है। जब पब्लिक कोर्ट के बारे में सोचती है तो उसे लगता है कि वो अपना काम ठीक से नहीं कर रहे। और फिर जब पुलिस कोई कदम उठाती है तो उन्हें अच्छा लगता है। यही वजह है कि जब किसी रेप के आरोपी का एनकाउंटर किया जाता है तो पब्लिक खुशियां मनाती है। उन्हें लगता है कि न्याय दे दिया गया है.. पर क्या वाकई ऐसा है ?’

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